वंदे मातरम: मोदी- लक्ष्य असंभव नहीं, कांग्रेस बोली- RSS ने कभी गाया ही नहीं

अजमल शाह
अजमल शाह

दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में जब पूरा स्टेडियम “वंदे मातरम” से गूंज उठा, तो पीएम मोदी खुद भी सुर में सुर मिलाते दिखे। इस मौके पर उन्होंने 150वीं वर्षगांठ पर स्मारक स्टैम्प और सिक्का जारी किया और कहा – “वंदे मातरम एक मंत्र है, एक ऊर्जा है, एक सपना है। ऐसा कोई संकल्प नहीं जो हम भारतीय पूरा न कर सकें।”

ये कार्यक्रम अब सिर्फ एक दिन का नहीं — बल्कि 7 नवंबर 2025 से 7 नवंबर 2026 तक देशभर में सालभर का सेलिब्रेशन रहेगा।

वंदे मातरम की कहानी — 1875 से 2025 तक

साल 1875 में बंकिमचंद्र चटर्जी ने अक्षय नवमी के दिन ‘वंदे मातरम’ लिखा था। पहली बार यह उनके उपन्यास ‘आनंदमठ’ में छपा और देखते ही देखते भारत के स्वतंत्रता संग्राम का ‘फुल वॉल्यूम’ बन गया। “यह गीत मातृभूमि की पूजा नहीं, बल्कि उस भावना की अभिव्यक्ति है जो देश को एक सूत्र में बांधती है।”

कांग्रेस का क्लासरूम मोड: “RSS, होमवर्क भूल गया!”

जहां बीजेपी इसे “राष्ट्रीय गौरव का पर्व” बता रही है, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बीजेपी और RSS पर तंज कस दिया।

उन्होंने कहा – “जो खुद को राष्ट्रभक्त बताते हैं, उन्होंने कभी अपनी शाखाओं में वंदे मातरम या जन गण मन नहीं गाया। वो तो ‘नमस्ते सदा वत्सले’ गाते रहते हैं।”

कांग्रेस का दावा है कि 1986 से हर मीटिंग की शुरुआत वंदे मातरम से होती है, जबकि RSS के “सिलेबस” में ये गीत गायब है।

RSS पर जुबानी जंग – ‘देशभक्ति का सर्टिफिकेट’ किसके पास?

खड़गे बोले, “RSS ने आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों का साथ दिया, संविधान का अपमान किया और झंडा फहराने से भी मना किया।”

कांग्रेस का बयान आया ठीक उस वक्त जब पीएम मोदी दिल्ली में और अमित शाह पटना में इस आयोजन में शामिल थे।
यानी मंच पर ‘वंदे मातरम’ गूंज रहा था और बैकस्टेज पर ‘राजनीतिक बेसुरापन’।

जवान और जन-जन तक पहुंचेगा यह गीत

सरकार का उद्देश्य है कि यह 150वां साल सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि “युवा पीढ़ी को देशभक्ति से जोड़ने का अभियान” बने। स्कूल, कॉलेज, सांस्कृतिक मंचों पर इस दौरान पूरे वर्जन का गायन किया जाएगा — बिलकुल वैसे ही जैसे मोदी के मंच से पूरा भारत गूंज उठा — वंदे मातरम!

भारत में “वंदे मातरम” अब सिर्फ गाना नहीं रहा — यह “राजनीति का रिंगटोन” बन चुका है — जहां हर पार्टी अपने सुर में इसे गाने का दावा करती है, पर जनता कहती है — “हमें बस इतना चाहिए कि बोलते वक्त दिल से निकले — वंदे मातरम!

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